*_आधुनिकता का युग_*
क्या दिन आ गये है अब तो लोगो के पास रिंगटोन बदलने का समय नही हैं। वरना पहले दिन में चार बार केवल रिंगटोन बदलने का काम ही सब लोग करते थे। कौन सी अच्छी टून है। लोगो से पूछा करते थे। अब टून तो बड़ी दूर की बात है। दुख दर्द भी नही पूछते है। वाह रे! वाह! कैसा बदलता जा रहा है। इंसान शरीर जैसे का तैसे लेकिन व्यवहार कितना बदल रहा है। किसी को किसी का सुख नही देखा जा रहा है। वो सुखी क्यों है इसी का उसे अफसोस रहता है। कोई मेहनत नही करना चाहता केवल उसके जैसा सब कुछ चाहता है।
रिश्ते नाते भूल गये हैं,भूले अपने आप को।
हमको लगता भूल गये हैं,सुत अपने माँ-बाप को।।
नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर ( मध्यप्रदेश )
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