Tuesday, December 4, 2018

मात्रा पतन के नियम

मात्रा गिराने का नियम- वस्तुतः "मात्रा गिराने का नियम" कहना गलत है क्योकि मात्रा को गिराना अरूज़ शास्त्र में "नियम" के अंतर्गत नहीं बल्कि छूट के अंतर्गत आता है | अरूज़ पर उर्दू लिपि में लिखी किताबों में यह 'नियम' के अंतर्गत नहीं बल्कि छूट के अंतर्गत ही बताया जाता रहा है, परन्तु अब यह छूट इतनी अधिक ली जाती है कि नियम का स्वरूप धारण करती जा रही है इसलिए अब इसे मात्रा गिराने का नियम कहना भी गलत न होगा इसलिए आगे इसे नियम कह कर भी संबोधित किया जायेगा | मात्रा गिराने के नियमानुसार, उच्चारण अनुसार  तो हम एक मिसरे में अधिकाधिक मात्रा गिरा सकते हैं परन्तु उस्ताद शाइर हमेशा यह सलाह देते हैं कि ग़ज़ल में मात्रा कम से कम गिरानी चाहिए
यदि हम मात्रा गिराने के नियम की परिभाषा लिखें तो कुछ यूँ होगी -

" जब किसी बहर के अर्कान में जिस स्थान पर लघु मात्रिक अक्षर होना चाहिए उस स्थान पर दीर्घ मात्रिक अक्षर आ जाता है तो नियमतः कुछ विशेष अक्षरों को हम दीर्घ मात्रिक होते हुए भी दीर्घ स्वर में न पढ़ कर लघु स्वर की तरह कम जोर दे कर पढते हैं और दीर्घ मात्रिक होते हुए भी लघु मात्रिक मान लेते है इसे मात्रा का गिरना कहते हैं "

अब इस परिभाषा का उदाहारण भी देख लें - २१२२ (फ़ाइलातुन) में, पहले एक दीर्घ है फिर एक लघु फिर दो दीर्घ होता है, इसके अनुसार शब्द देखें - "कौन आया"  कौ२ न१ आ२ या२
और यदि हम लिखते हैं - "कोई आया" तो इसकी मात्रा होती है २२ २२(फैलुन फैलुन) को२ ई२ आ२ या२
परन्तु यदि हम चाहें तो "कोई आया" को  २१२२ (फाइलातुन) अनुसार भी गिनने की छूट है| देखें -
को२ ई१ आ२ या२
यहाँ ई की मात्रा २ को गिरा कर १ कर दिया गया है और पढते समय भी ई को दीर्घ स्वर अनुसार न पढ़ कर ऐसे पढेंगे कि लघु स्वर का बोध हो 
अर्थात "कोई आया"(२२ २२) को यदि  २१२२ मात्रिक मानना है तो इसे "कोइ आया" अनुसार उच्चारण अनुसार पढेंगे  

नोट - ग़ज़ल को लिपि बद्ध करते समय हमेशा शुद्ध रूप में लिखते हैं "कोई आया" को २१२२ मात्रिक मानने पर भी केवल उच्चारण को बदेंलेंगे अर्थात पढते समय "कोइ आया" पढेंगे परन्तु मात्रा गिराने के बाद भी "कोई आया" ही लिखेंगे 

इसलिए ऐसा कहते हैं कि, 'ग़ज़ल कही जाती है|' कहने से तात्पर्य यह है कि उच्चारण के अनुसार ही हम यह जान सकते हैं कि ग़ज़ल को किस बहर में कहा गया है यदि लिपि अनुसार मात्रा गणना करें तो कोई आया हमेशा २२२२ होता है, परन्तु यदि कोई व्यक्ति "कोई आया" को उच्चरित करता है तो तुरंत पता चल जाता है कि पढ़ने वाले ने किस मात्रा अनुसार पढ़ा है २२२२ अनुसार अथवा २१२२ अनुसार यही हम कोई आया को २१२२ गिनने पर "कोइ आया"  लिखना शुरू कर दें तो धीरे धीरे लिपि का स्वरूप विकृत हो जायेगा और मानकता खत्म हो जायेगी इसलिए ऐसा भी नहीं किया जा सकता है
ग़ज़ल "लिखी" जाती है ऐसा भी कह सकते हैं परन्तु ऐसा वो लोग ही कह सकते हैं जो मात्रा गिराने की छूट कदापि न लें, तभी यह हो पायेगा कि उच्चारण और लिपि में समानता होगी और जो लिखा जायेगा वही जायेगा    
आशा करता हूँ तथ्य स्पष्ट हुआ होगा

आपको एक तथ्य से परिचित होना भी रुचिकर होगा कि प्राचीन भारतीय छन्दस भाषा में लिखे गये वेद पुराण आदि ग्रंथों के श्लोक में मात्रा गिराने का स्पष्ट नियम देखने को मिलता है| आज इसके विपरीत हिन्दी छन्द में मात्रा गिराना लगभग वर्जित है और अरूज में इस छूट को नियम के स्तर तक स्वीकार कर लिया गया है

मात्रा गिराने के नियम को पूरी तरह से जानने के लिए जिन बातों को जानना होगा वह हैं -

अ) किन दीर्घ मात्रिक को गिरा कर लघु मात्रिक कर सकते हैं और किन्हें नहीं ?
ब) शब्द में किन किन स्थान पर मात्रा गिरा सकते हैं और किन स्थान पर नहीं?
स) किन शब्दों की मात्रा को गिरा सकते हैं औत किन शब्दों की मात्रा को नहीं गिरा सकते ?

हम इन तीनों प्रश्नों का उत्तर क्रमानुसार खोजेंगे आगे यह पोस्ट तीन भाग अ) ब) स) द्वारा विभाजित है जिससे लेख में स्पष्ट विभाजन हो सके तथा बातें आपस में न उलझें 

नोट - याद रखें "स्वर" कहने पर "अ - अः" स्वर का बोध होता है, व्यंजन कहने पर "क - ज्ञ" व्यंजन का बोध होता है तथा अक्षर कहने पर "स्वर" अथवा "व्यंजन" अथवा "व्यंजन + स्वर" का बोध होता है, पढते समय यह ध्यान दें कि स्वर, व्यंजन तथा अक्षर में से क्या लिखा गया है
-----------------------------------------------------------------------------------------
अ) किन दीर्घ मात्रिक को गिरा कर लघु कर सकते हैं और किन्हें नहीं ?
इस प्रश्न के साथ एक और प्रश्न उठता है हम उसे भी जोड़ कर दो प्रश्न तैयार करते हैं

१) जिस प्रकार दीर्घ मात्रिक को गिरा कर लघु कर सकते हैं क्या लघु मात्रिक को उठा कर दीर्घ कर सकते हैं ?
२) हम कौन कौन से दीर्घ मात्रिक अक्षर को लघु मात्रिक कर सकते हैं ?

पहले प्रश्न का उत्तर है - सामान्यतः नहीं, हम लघु मात्रिक को उठा कर दीर्घ मात्रिक नहीं कर सकते, यदि किसी उच्चारण के अनुसार लघु मात्रिक, दीर्घ मात्रिक हो रहा है जैसे - पत्र२१ में "प" दीर्घ हो रहा है तो इसे मात्रा उठाना नहीं कह सकते क्योकि यहाँ उच्चारण अनुसार अनिवार्य रूप से मात्रा दीर्घ हो रही है, जबकि मात्रा गिराने में यह छूट है कि जब जरूरत हो गिरा लें और जब जरूरत हो न गिराएँ 
(परन्तु ग़ज़ल की मात्रा गणना में इस बात के कई अपवाद मिलाते हैं कि लघु मात्रिक को दीर्घ मात्रिक माना जाता है इसकी चर्चा हम क्रम - ७ में करेंगे)

दूसरे प्रश्न का उत्तर अपेक्षाकृत थोडा बड़ा है और इसका उत्तर पाने के लिए पहले हमें यह याद करना चाहिए कि अक्षर कितने प्रकार से दीर्घ मात्रिक बनते हैं फिर उसमें से विभाजन करेंगे कि किस प्रकार को गिरा सकते हैं किसे नहीं

इस लेखमाला में क्रम -४ (बहर परिचय तथा मात्रा गणना) में क्रमांक १ से ९ तक लघु तथा दीर्ध मात्रिक अक्षरों को विभाजित किया गया है, यदि उस सारिणी को ले लें तो बात अधिक स्पष्ट हो जायेगी| क्रमांकों के अंत में मात्रा गिराने से सम्बन्धित नोट लाल रंग से लिख दिया है, देखिये  -

क्रमांक १ - सभी व्यंजन (बिना स्वर के) एक मात्रिक होते हैं
जैसे – क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट ... आदि १ मात्रिक हैं
यह स्वयं १ मात्रिक है

क्रमांक २ - अ, इ, उ स्वर व अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं
जैसे = अ, इ, उ, कि, सि, पु, सु हँ  आदि एक मात्रिक हैं 
यह स्वयं १ मात्रिक है

क्रमांक ३ - आ, ई, ऊ ए ऐ ओ औ अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं
जैसे = आ, सो, पा, जू, सी, ने, पै, सौ, सं आदि २ मात्रिक हैं
इनमें से केवल आ ई ऊ ए ओ स्वर को गिरा कर १ मात्रिक कर सकते है तथा ऐसे दीर्घ मात्रिक अक्षर को गिरा कर १ मात्रिक कर सकते हैं जो "आ, ई, ऊ, ए, ओ" स्वर के योग से दीर्घ हुआ हो अन्य स्वर को लघु नहीं गिन सकते न ही ऐसे अक्षर को लघु गिन सकते हैं जो ऐ, औ, अं के योग से दीर्घ हुए हों
उदाहरण =
मुझको २२ को मुझकु२१ कर सकते हैं 
आ, ई, ऊ, ए, ओ, सा, की, हू, पे, दो आदि को दीर्घ से गिरा कर लघु कर सकते हैं परन्तु ऐ, औ, अं, पै, कौ, रं आदि को दीर्घ से लघु नहीं कर सकते हैं
स्पष्ट है कि आ, ई, ऊ, ए, ओ स्वर तथा आ, ई, ऊ, ए, ओ तथा व्यंजन के योग से बने दीर्घ अक्षर को गिरा कर लघु कर सकते हैं

क्रमांक ४.
४. (१) - यदि किसी शब्द में दो 'एक मात्रिक' व्यंजन हैं तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक अर्थात दीर्घ बन जाते हैं जैसे ह१+म१ = हम = २  ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं जिनको जरूरत के अनुसार ११ अथवा १ नहीं किया जा सकता है
जैसे – सम, दम, चल, घर, पल, कल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं
ऐसे किसी दीर्घ को लघु नहीं कर सकते हैं|  दो व्यंजन मिल कर दीर्घ मात्रिक होते हैं तो ऐसे दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं 
उदहारण = कमल की मात्रा १२ है इसे क१ + मल२ = १२ गिनेंगे तथा इसमें हम मल को गिरा कर १ नहीं कर सकते अर्थात कमाल को ११ अथवा १११ कदापि नहीं गिन सकते  

४. (२) परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे –  असमय = अ/स/मय =  अ१ स१ मय२ = ११२     
असमय का उच्चारण करते समय 'अ' उच्चारण के बाद रुकते हैं और 'स' अलग अलग बोलते हैं और 'मय' का उच्चारण एक साथ करते हैं इसलिए 'अ' और 'स' को दीर्घ नहीं किया जा सकता है और मय मिल कर दीर्घ हो जा रहे हैं इसलिए असमय का वज्न अ१ स१ मय२ = ११२  होगा इसे २२ नहीं किया जा सकता है क्योकि यदि इसे २२ किया गया तो उच्चारण अस्मय हो जायेगा और शब्द उच्चारण दोषपूर्ण हो जायेगा|   

यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है अ१ स१ और मय२ को हम ४.१ अनुसार नहीं गिरा सकते    

क्रमांक ५ (१) – जब क्रमांक २ अनुसार किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन(१ मात्रिक क्रमांक १ के अनुसार) हो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है

उदाहरण – “तुम” शब्द में “'त'” '“उ'” के साथ जुड कर '“तु'” होता है(क्रमांक २ अनुसार), “तु” एक मात्रिक है और “तुम” शब्द में “म” भी एक मात्रिक है (क्रमांक १ के अनुसार)  और बोलते समय “तु+म” को एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता
इसके और उदाहरण देखें = यदि, कपि, कुछ, रुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं
 
ऐसे दो मात्रिक को नहीं गिरा कर लघु नहीं कर सकते

५ (१) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दोनो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे –  सुमधुर = सु/ म /धुर = स+उ१ म१ धुर२ = ११२   

यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है स+उ=१ म१ और धुर२ को हम ५.१ अनुसार नहीं गिरा सकते    

क्रमांक ६ (१) - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं (क्रमांक २ अनुसार) तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता
जैसे = पुरु = प+उ / र+उ = पुरु = २,   
इसके और उदाहरण देखें = गिरि
ऐसे दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते

६ (२) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा
जैसे –  सुविचार = सु/ वि / चा / र = स+उ१ व+इ१ चा२ र१ = ११२१
यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है स+उ१ व+इ१    

क्रमांक ७ (१) - ग़ज़ल के मात्रा गणना में अर्ध व्यंजन को १ मात्रा माना गया है तथा यदि शब्द में उच्चारण अनुसार पहले अथवा बाद के व्यंजन के साथ जुड जाता है और जिससे जुड़ता है वो व्यंजन यदि १ मात्रिक है तो वह २ मात्रिक हो जाता है और यदि दो मात्रिक है तो जुडने के बाद भी २ मात्रिक ही रहता है ऐसे २ मात्रिक को ११ नहीं गिना जा सकता है
उदाहरण -
सच्चा = स१+च्१ / च१+आ१  = सच् २ चा २ = २२
(अतः सच्चा को ११२ नहीं गिना जा सकता है)

आनन्द = आ / न+न् / द = आ२ नन्२ द१ = २२१  
कार्य = का+र् / य = कार् २  य १ = २१  (कार्य में का पहले से दो मात्रिक है तथा आधा र के जुडने पर भी दो मात्रिक ही रहता है)
तुम्हारा = तु/ म्हा/ रा = तु१ म्हा२ रा२ = १२२
तुम्हें = तु / म्हें = तु१ म्हें२ = १२ 
उन्हें = उ / न्हें = उ१ न्हें२ = १२

No comments:

Post a Comment

'कात्यायनी' काव्य संग्रह का हुआ विमोचन। - छतरपुर, मध्यप्रदेश

'कात्यायनी' काव्य संग्रह का हुआ विमोचन।  छतरपुर, मध्यप्रदेश, दिनांक 14-4-2024 को दिन रविवार  कान्हा रेस्टोरेंट में श्रीम...