Friday, December 21, 2018

लघुकथा ( पछतावा ) --आ० गीता भट्टाचार्या जी

लघुकथा
पछतावा
निर्मला व प्रमिला बचपन की सहेलियाँ थीं।निर्मला के मन में एक इच्छा जागी उसने प्रमिला से कहा-"सखि क्यों न हम अपनी दोस्ती को और भी मजबूत रिश्तों में बाँधे'।
प्रमिला ने कहा"क्या कहना चाहती हो खुलकर बताओ"
निर्मला ने कहा"मैं चाहती हूँ तुम्हारी पोती और मेरे पोते की शादी अक्षय तृतीया के दिन कर दें।"
प्रमिला ने कहा बात तो अच्छी है पर दोनों अभी छोटे हैं।"
निर्मला ने कहा "सोचो उनके बड़े होते तक हम जीवित रह पायेंगे क्या?'
प्रमिला ने कहा-"हाँ जीवन का क्या भरोसा आज है कल नहीं। ठीक है कल बेटे-बहू से बात करती हूँ।"बेटे-बहू भी थोड़ी सी आनाकानी के बाद मान गये। सारीबातें उनकी पड़ोसन की बेटी जो कालेज में पढ़ती थी ।उसने सुन लिया और कहा " आजकल तो बालविवाह करना मना है।"
निर्मला ने कहा"चार अक्षर पढ़ क्या लिए हमें ज्ञान दे रही है ,चल भाग यहाँ से, अब हमारी चौखट पर कभी पाँव न धरना।
घबराओ मत सखि ये बित्ते भर की लड़की हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती तो तय रहा अक्षय तृतीया का दिन"।
अक्षय तृतीया के दिन प्रमिला के घर विवाह का मंडप लगा था पोती कृष्णा को दुल्हन की तरह सजाया गया था जो मात्र8 वर्ष की थी।
उधर निर्मला दस वर्षीय कमल की बारात घर वालोंके साथ लेकर आ रही थी।
विवाह प्रारंभ होने वाला ही था।सहसा दरवाजे पर पुलिस की फौज पुलिस कमिश्नर के साथ खड़ी थी
"ये क्या चल रहा है?आप लोगों को मालूम नहीं बाल विवाह कानूनी जुर्म  है। बंद करिए बच्चो के भविष्य के साथ खिलवाड़-पुलिस कमिश्नर ने कहा"
निर्मला समझ ग ई थी इसके पीछे उस मुहफट लड़की का ही हाथ है ।जिसने सारे किए-धराए पर पानी फेर दिया।

गीता भट्टाचार्या

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