(1)◆मदिरा सवैया◆
= भगण(211)×7+गुरु
यति 12,10 या 10,12 वर्णों पर।
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(2)◆मत्तगयन्द सवैया◆
= भगण(211) X 7+गुरु+गुरु
यति 12,11 या 11,12 वर्णों पर।
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(3)◆सुमुखी सवैया◆
= जगण(121)×7+लघु+गुरु
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(4)◆दुर्मिल सवैया◆
= सगण(112)X8
यति 12,12वर्ण पर।
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(5)◆किरीट सवैया◆
= भगण(211)X8
यति 11,13वर्ण पर
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(6)-◆गंगोदक सवैया◆
= रगण(212)×8
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विशेष-
[मंदारमाला सवैया = गुरु + रगण X 7 = तगण X 7 + गुरु ]
गंगोदक सवैया के बारे में जानकारी हो चुकी है जिसका विधान रगण X 8 होता है.
इस वृत से एक रगण हटा कर इसके आदि में एक गुरु जोड़ दिया जाय तो मंदारमाला सवैया होना माना जाता है.
यानि, गुरु + रगण रगण रगण रगण रगण रगण रगण
या, ऽ + ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ
उपरोक्त विन्यास को ध्यान से देखा जाय तो तगण की सात आवृतियों के पश्चात एक गुरु का होना भी निश्चित होता है.
यानि, ऽऽ। ऽऽ। ऽऽ। ऽऽ। ऽऽ। ऽऽ। ऽऽ। + ऽ
अर्थात मंदारमाला सवैया = गुरु + रगण X 7 = तगण X 7 + गुरु
चूँकि, गणों की नियत आवृति को वृत कहते हैं अतः हर वृत का एक विशेष वाचन प्रवाह बन जाता है. अतः यति वाचन-प्रवाह में स्वयमेव स्थान ले लेती है. फिरभी, 12-10 की यति मान्य है।
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(7)-◆मुक्तहरा सवैया◆
= जगण(121)×8
या......लघु+मत्तगयन्द+लघु
या......वाम सवैया+लघु
मुक्तहरा सवैया में 8 जगण होते हैं। मत्तगयन्द आदि - अन्त में एक-एक लघुवर्ण जोड़ने से यह छन्द बनता है; 11, 13 वर्णों पर यती होती है। देव, दास तथा सत्यनारायण ने इसका प्रयोग किया है।
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(8)-◆वाम सवैया◆
= जगण[(121)×7]+यगण(122)
या..........लघु+ मत्तगयन्द सवैया
वाम सवैया के मंजरी, माधवी या मकरन्द अन्य नाम हैं।यह 24 वर्णों का छन्द है, जो सात जगणों और एक यगण के योग से बनता है। मत्तगयन्द के आदि में लघु वर्ण जोड़ने से यह छन्द बन जाता है। केशव और दारा ने इसका प्रयोग किया है। केशव ने मकरन्द, देव ने माधवी, दास ने मंजरी और भानु ने वाम नाम दिया है।
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(9)-◆अरसात सवैया◆
= भगण[(211)×7]+रगण(212)
अरसात सवैया 24 वर्णों का छन्द 7 भगणों और रगण के योग से बनता है। देव और दास ने इस छन्द का प्रयोग किया है।
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(10)◆सुंदरी सवैया◆
= सगण(112)X8+गुरु
=≠====================
(11)-◆अरविन्द सवैया◆
=सगण(112)×8+लघु
या......दुर्मिल+लघु
{सुंदरी सवैया= दुर्मिल+गुरु}
वस्तुतः यह सवैया दुर्मिल सवैया का ही विस्तार सदृश है. अर्थात, आठ सगण के पश्चात एक लघु इस सवैया के होने का कारण है.
यानि, अरविन्द सवैया = सगण X 8 + लघु यानि, यह छंद कुल 25 वर्णों का वृत है.
यानि, सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा + लघु
या, ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ + लघु
यहाँ ध्यान से देखा जाय तो एक बात और स्पष्ट होती है, और वह है सुन्दरी सवैया तथा अरविन्द सवैया के मध्य का महीन अंतर.
दुर्मिल सवैया के अंत में एक लघु का संयोग अरविन्द सवैया के होने का कारण होता है जबकि,
दुर्मिल सवैया के अंत में ही एक गुरु का संयोग सुन्दरी सवैया के होने का कारण है.
======================
(12)-◆मानिनी सवैया◆
=जगण(121)×7+लघु+गुरु
मानिनी सवैया 23 वर्णों का छन्द है। 7 जगणों और लघु गुरु के योग से यह छन्द बनता है। वाम सवैया का अन्तिम वर्ण न्यून करने से या दुर्मिल का प्रथम लघु वर्ण न्यून करने से यह छन्द बनता है।
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(13) ◆महाभुजंगप्रयात सवैया◆
=यगण(122)×8
यगणाश्रित (यगण पर आश्रित) सवैयों में महाभुजंगप्रयातया भुजंगप्रयात सवैयों को लिया जा रहा है. जिसमें यगण की आठ आवृतियाँ वृत का निर्माण करती हैं.
अर्थात, महाभुजंगप्रयात सवैया = यगण X 8
या, यमाता यमाता यमाता यमाता यमाता यमाता यमाता यमाता
यानि, ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ
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(14)-◆सुखी सवैया◆
=सगण(112)×8+लघु+लघु
या....दुर्मिल+लघु+लघु
*सुख सवैया*
=सगण(112)×8+गुरु+गुरु
या.....दुर्मिल+गुरु+गुरु
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संकलन ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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