Wednesday, May 15, 2019

बरवै छंद "दिव्य" जी

*बरवै-छंद*

(विषम पदों में 12,सम पदों में 7 मात्राएँ)

*(गोपी ऊधौ से)*

ज्ञान  ध्यान  आता  नहिं,जानू  प्रीत|
ऊधौ  वापस  जाओ, न  सुनूँ  गीत||
कैसे हिय प्यास बुझे,बिनु घन श्याम|
बिनती   बार बार  जा,  ऊधौ धाम||

प्राण   हमारे   मोहन ,मैं   हूँ  देह|
जा संदेशों  कहियो, उजड़ो  गेह||
परसों अरसों की  कहँ,बीते साल|
जीना अब तो दुश्वर ,कैसा  हाल||

वा  छलिया  मोहन  से,कहना  बात|
तड़फ रहिं है विरहिणी,दिन अरु रात||
आये यदि  अतिसीघ्र न,तज दूँ प्राण|
कान्हा   यादें   चुभती,  जैसे   बाण||

लज्जा छोड़ी  हमने,पायो तोहिं|
क्यों बीच भँवर छोड़ा,कान्हा मोहि||
ऊधौ जाओ जाओ,मत  विष घोल|
कैसों है साँवरिया,सच सच बोल||

ठहरी  चंचल  नारी ,मत  दो  ज्ञान|
बँधी डोर कान्हा सँग,सच लो जान||
दया भाव मोहन उर, भर  दो जाय|
तब जानू ज्ञानी प्रिय, देउँ  मिलाय||

देख प्रीत गोपिन की,ऊधौ सोच|
सगुण भक्ति है सच्ची,मैं तो पोच||
कैसी  ये प्रीत  हुए, भाव विभोर|
ज्ञान हुआ नीरस तब,जागी भोर||

~जितेन्द्र चौहान "दिव्य"

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