*मनहरण घनाक्षरी छंद*
खुशी खुशी खुशी जब,संजना की मित्र बनी।
खुशियाँ अपार सदा,हृदय समाई हैं।
होते हुये दोस्त कमी,दुश्मनों की खलती न।
शुभ कार्य साथ सदा,शुभ घड़ी पाई है।।
एक साथ पढ़ते है, और साथ लड़ते है।
हृदय के भाव खोलने,की घङी आई है।।
रहना है संग साथ,मिलके बढ़ाना हाथ।
भारत ने मरने की,कसमे भी खाई है।।
*-- नीतेन्द्र भारत*
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