◆ एकावली छंद ◆
शिल्प~ प्रति चरण 10 मात्राएँ
[5-5 पर यति]
राम का,नाम ले।
अक्ल से,काम ले।।
मान जा, तू कही।
बात है , ये सही।।
छलकपट, यूं न कर।
तू जरा ,सोच नर।।
रख रहा, जोड़कर।
पर नही ,ये खबर।।
तेरा न ,कुछ यहाँ।
जा रहा, तू कहाँ।।
तुझे कुछ, भी नहीं।
सब यहीं ,का यहीं।।
इसलिए"सोम"रे।
जपो हरि ,ओम रे।।
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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