*◆ कनक मंजरी छंद ◆*
शिल्प~ 4 लघु+ 6भगण (211)+1गुरु] = 23 वर्ण
[चार चरण समतुकांत] या
{1111+211+211+211,
211+211+211+2}
वह क्षण जो दुख से भरते सब,
ओम वही फिर फूल लगें।
सुखमय हैं सब पावन-से क्षण,
ज्ञान बिना यह भूल लगें।।
अमृत अभी तुझको लगता विष,
मंथन के बिन शूल लगें।
अमिय - हलाहल पूरक हैं सब,
आपस में यह मूल लगें।।
*©मुकेश शर्मा "ओम"*
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