Saturday, May 18, 2019

ग़ज़ल राजेश कुमार शर्मा

उसे ऐसे भेज दीजिये:-

*मतला:-*
संग गैरों के खुशियाँ मनाते रहे
दिल मेरा इस कदर वो जलाते रहे।

*हुस्न-ए-मतला (१):-*
वो भले हाथ हमसे छुड़ाते रहे
हम मुहब्बत उन्हीं से निभाते रहे।

*हुस्न-ए-मतला (२):-*
पास जितना भी हम उनके आते रहे
दूर उतना ही वो हमसे जाते रहे।

*शे'र:-*
जख्म जितने मिले हैं उन्होंने दिये
हम जिन्हें यार अपना बताते रहे।

थे खताबार दोनों बराबर के पर
वो फ़क़त गलती मेरी बताते रहे।

कोशिशें बच सके हम बहुत की मगर
हर दफा हम निशाने पे आते रहे।

*मक़्ता:-*
नाम पर लिख तुम्हारे ये *पंडित* गजल
बज्म में रात दिन  गुनगुनाते रहे।

राजेश कुमार शर्मा
प्रधानाध्यापक व कवि
नगर पँचायत रिठौरा बरेली

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