*ग़ज़ल*
221 2121 1221 212
इन्सानियत का पाठ पढ़ाने की बात हो।
नफ़रत सभी दिलों से मिटाने की बात हो।
रोने की बात हो न रुलाने की बात हो।
ख़ुशहाल ज़िन्दगी को बनाने की बात हो।
दीमक के जैसे चाट रहें हैं जो एकता
नाम-ओ-निशान उनका मिटाने की बात हो।
रखती है दूर आदमी को आदमी से जो
नफ़रत की वो दीवार गिराने की बात हो।
आयेंगे वो न बाज ये जब जानते हैं हम
क्यों दुश्मनों से हाथ मिलाने की बात हो।
ख्वाबों में जी रहा ये पड़ोसी जो मुल्क है
अब आइना इसे भी दिखाने की बात हो।
*हीरा* करेंगे बात सितारों की बाद में
भूखों की पहले भूख मिटाने की बात हो।
हीरालाल
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