Saturday, March 30, 2019

आ० हीरालाल यादव जी

*ग़ज़ल*
1222 1222 122

नशे  में  मूँद  कर  आँखें  पड़े  हैं।
सियासत में जो ये चिकने घड़े हैं।

जुगत कर के जो कुर्सी पर हैं बैठे
उन्हें  लगता  है वो मोती जड़े हैं।

नज़र  आती  नहीं  है राह कोई
ये कैसे मोड़ पर हम आ खड़े हैं।

नहीं   बदलेंगे   यूँ  हालात  यारो
हमीं  को  फैसले  लेने  कड़े  हैं।

सुलह  का रास्ता निकलेगा कैसे
जो जिद पर आप हम दोनो अड़े हैं।

सदाकत  की  चुनी है राह *हीरा*
तभी दुनिया की नज़रों में गड़े हैं।

                   हीरालाल

No comments:

Post a Comment

एकल 32 वीं तथा कुण्डलिया छन्द की 7वीं पुस्तक- "नित्य कुण्डलिया लिखता" का लोकार्पण

मेरी एकल 32 वीं तथा कुण्डलिया छन्द की 7वीं पुस्तक- "नित्य कुण्डलिया लिखता"  का लोकार्पण चर्चित साहित्यिक संस्था  "तरुणोदय सां...