मुक्तक
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लगी दिल की भुलाने को,
अजी होली में आ जाओ |
गिला शिकवा मिटाने को,
अजी होली में आ जाओ ||
बहाना खूब ढूँढा है,
कलेजे से लगाने का,
हमें अपना बनाने को,
अजी होली में आ जाओ ||
विश्वेश्वर शास्त्री'विशेष'
राठ हमीरपुर उ.प्र.
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