बहर:- 212 212 212 212
रदीफ़- लगे
काफ़िया- ये।
यूं मिलाकर नज़र क्यों झुकाने लगे।
प्यार करके मुझे,क्यों भुलाने लगे।।1।।
प्रीत करनी नही थी बताते मुझे।
प्रीत को खेल सा,क्यों खिलाने लगे।।2।।
ग़म करूंगा नही,बात सुनलो ज़रा।
रंग ऐसे मुझे,क्यों दिखाने लगे।।3।।
चाँदनी रात में तुम मिले थे सुनो।
दूर होकर मुझे क्यों जलाने लगे।।4।।
बात ही बात में बात क्यों बढ़ गई।
आप बाते वही,क्यों सुनाने लगे।।5।।
भाग्य रूठा हुआ,क़ल्ब टूटा हुआ।
सच कहूँगा सुनो,हक जताने लगे।।6।।
लाज रख लीजिये,प्रेम की तो ज़रा।
दोष भारत मुझे,क्यों बताने लगे।।7।।
नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर ( मध्यप्रदेश )
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