Sunday, March 10, 2019

आ० हीरालाल यादव जी

1222 1222 1222 122

जमी जो बर्फ़ थी दुख की, वो अब गलने लगी है।
ख़ुशी की आरज़ू  दिल में नई पलने लगी है।

चले आओ चमन दिल का मेरे गुलज़ार करने
तुम्हारी याद फिर दिल को सनम छलने लगी है।

गुज़रता है मेरा हर दिन तुम्हारी आरज़ू में
तुम्हारी आस में हर रात अब ढलने लगी है।

नज़र से और की रखिए बचा अपने जहां को
ख़ुशी से गैर की दुनिया बहुत जलने लगी है।

तक़ाज़ा उम्र का है जिस्म को आराम दे कुछ
थकन हर पल की अब ये जिस्म को खलने लगी है।

इनायत रब की है *हीरा* तेरे उपर बहुत जो
दुआ हर इक तेरी छोटी बड़ी फलने लगी है।

                  हीरालाल

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