Sunday, March 3, 2019

गीत


गीत:-

तेरे बिन क्या गज़ल़ कहूं मैं,
कैसा मैं अनुराग लिखूं।
उसके मन के गीत लिखूं मैं,
या गीतो का राग लिखूं।।

हँसी ठिठोली कोमल काया,
भँवरो का गुंजार सुनो।
हाथ पकड़कर साथ चला मैं,
परिभाषित इकरार सुनो।।
रूठी रूठी रहती है वो,
मैं तो राग विहाग लिखूं।
उसके मन के गीत लिखूं मैं,
या गीतो का राग लिखूं।।1।।

लहरे उठती है मन अंदर,
जैसे उठती सागर में।
अमृत सा जलपान करूं मैं,
भरा मिला जो गागर में।।
चिंगारी से बनती शोला,
शोला जैसी आँग लिखूँ।
उसके मन के गीत लिखूं मैं,
या गीतो का राग लिखूं।।2।।

दूर नहीं जा सकता उससे,
मन कुण्ठित हो जायेगा।
रंग महल जो बना जिगर मे,
वो खंडित हो जायेगा।।
पायल की झंकार सुनाती,
कैसे मैं बैराग लिखूं।
उसके मन के गीत लिखूं मैं,
या गीतो का राग लिखूं।।3।।

पानी बिन मछली न रहती,
कुआँ नदी तालाबों में।
प्यार का मतलब अलग-अलग है,
देखा रंग गुलाबों में।।
वृद्धाश्रम हर नगर नगर में,
इसको केवल त्याग लिखूं।।
उसके मन के गीत लिखूं मैं,
या गीतो का राग लिखूं।।4।।

- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क सूत्र :- 8109643725

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